प्यार का बंधन

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

जब मैं छोटा बच्चा था, कभी-कभी मैं माँ को परेशान करने के लिए पलंग के नीचे छिप जाता। माँ मुझे ढूँढती, आवाज देती और फिर इधर-उधर पूछना शुरू कर देती। 

वो कहती, “संजू, संजू कहाँ हो संजू…।”

मिनट दर मिनट माँ का चिंता बढ़ती जाती कि उनका प्यारा बेटा आखिर बिना बताए कहाँ गया। 

माँ जब खूब परेशान हो लेती तो मैं हँसता हुआ पलंग के नीचे से बाहर निकलता और माँ के गले से लिपट जाता। 

“माँ, तुम मुझसे कितना प्यार करती हो।”

माँ दुलार करती और कहती कि ऐसे कोई बिना बताए कहीं छिप जाता है क्या? देखो मिनट भर में मेरा क्या हाल हो गया है।

मैं कहता कि माँ मैं तो इसीलिए छिपा था कि देख सकूँ कि तुम मेरे लिए कितना परेशान होती हो।

फिर माँ मुझे और दुलार करती। मैं इस तरह छिप कर माँ को कई बार परेशान करता। 

धीरे-धीरे माँ को मेरे छिपने की सारी जगह का पता चल गया था। कई बार वो ये जान भी लेती थी कि मैं कहाँ छिपा हूँ, पर वो मुझे वहाँ ढूंढने की जगह इधर-उधर ढूँढती और आवाज लगाती। 

“संजू, संजू कहाँ हो संजू…।”

ये हमारा खेल था। माँ और बेटे के बीच प्यार का खेल।

***

आज मुझे सुबह लगा कि मैं अपनी पोस्ट रोज के टाइम पर नहीं डालूँगा। आज मैं अपने परिजनों को हैरान करूँगा। आज मैं छिप जाऊँगा। आज मैं आप सबको मजबूर करूँगा कि आप मुझे आवाज देकर ढूंढें। आज मैं वही खेल खेलूँगा, जो माँ के साथ खेलता था। आज मैं सबसे प्यार से लिपट जाऊँगा। 

बस यही सोच कर मैं सुबह टहलने चला गया। फिर वापसी पर चाय पीने बैठ गया। पत्नी ने मुझसे पूछा भी क्या आज लैपटॉप नहीं खोल रहे। 

मैं चुप रहा। 

इस तरह आज मैंने आपके साथ छुपन-छुपायी का खेल खेला।

सुबह के साढ़े आठ बज गये। मैंने अपने मेसेज बॉक्स को खोल कर देखा। 

हे भगवान! डेढ़ सौ मेसेज? 

मतलब मैंने लिखने में घंटा भर देर की और इतने लोगों ने मुझे याद कर लिया। किसी ने पूछा कि तबियत तो ठीक है न! किसी ने कहा, गुड मॉर्निंग संजय सिन्हा। किसी ने संदेश भेजा जागो, संजय जागो। 

पर ठीक 8.21 मिनट पर मेरे फोन की घंटी बजी, मैंने देखा यह बाँका से Jaya Pandey जी का फोन था।

मैं समझ गया कि अब बहुत हुआ। अब मुझे ‘पलंग के नीचे’ से बाहर निकल ही आना चाहिए।

***

यही है प्यार। 

जिससे हम प्यार करते हैं, उसकी हम परवाह करते हैं। आप सब मुझसे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए अगर मैंने एक पोस्ट लिखने में घंटा भर देर की, तो इतने सारे लोगों में मेरी तलाश शुरू दी। मैं जानता हूँ कि आप सब मेरी चिंता करते हैं। मेरी परवाह करते हैं। 

***

जब माँ इस संसार से जा रही थी तो मैं बहुत उदास था। माँ मेरे सिर को सहलाते हुए कह रही थी, “उदास मत हो। मैं लौट कर आऊँगी तुम्हारे पास।”

आज मैंने अपने फोन पर इन डेढ़ सौ संदेशों में माँ की ही आवाज सुनी। 

“संजू, संजू कहाँ हो संजू…।”

(देश मंथन, 06 नवंबर 2015)

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