शादी की बंजर भूमि पर प्यार के फूल खिलाओ

0
346

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक पिता और पुत्र ट्रेन में सफर कर रहे थे। पिता पुत्र से कहता नंबर तीन और दोनों जोर-जोर से हँसने लगते। दोनों की हँसी थमती और फिर पुत्र कहता नंबर सात। पुत्र के मुँह से नंबर सात निकला नहीं कि दोनों पेट पकड़ कर हँसने लगते। 

इस तरह दोनों एक दूसरे से कुछ नंबर कहते और हँसने लगते। 

आस-पास बैठे यात्री बहुत देर से यह खेल देख रहे थे। आखिर एक यात्री से नहीं रहा गया तो उसने पिता से पूछ ही लिया, “भाई साहब, बहुत देर से देख रहा हूँ कि कभी आप कोई नंबर बोलते हैं और दोनों हँस पड़ते हैं। इसी तरह आपका बेटा कोई नंबर बोलता है और फिर आप दोनों हँस पड़ते हैं। आखिर नंबरों का ये खेल है क्या?”

पिता ने उस आदमी को समझाया, “हम दोनों बारी-बारी से एक दूसरे को चुटकुले सुना रहे हैं और चुटकुले सुन कर हँसी तो आ ही जाती है।”

“चुटकुले? ये कैसे चुटकुले हैं?”

“दरअसल हम सारे चुटकुले एक-दूसरे को सुना चुके हैं। अब रोज-रोज नये चुटकुले तो बनते नहीं, ऐसे में हमने सभी चुटकुलों को नंबर से याद कर लिया है। अब पूरा चुटकुला कौन दुबारा सुने और सुनाए? तो जैसे ही मैं कोई नंबर बोलता हूँ, हम दोनों को उस नंबर का चुटकुला याद आ जाता है। जैसे ही चुटकुला याद आया, हम दोनों हँस पड़ते हैं। फिर मेरा बेटा एक नंबर बोलता है, तो हमें उस नंबर वाला चुटकुला याद आ जाता है, बस हम हँसते हुए सफर काट लेते हैं।”

हा हा हा…

कल संजय सिन्हा ने जिन्दगी को मस्ती में जीने के लिए खुशवंत सिंह के दस सूत्रों की चर्चा यहाँ फेसबुक पर की थी। आप सबने पूरी पोस्ट पढ़ी। बहुत से लोगों ने सभी दसों सूत्रों को सराहा। पर कुछ लोग चार नंबर पर अटक गये। 

चार नंबर?

मैं जानता हूँ कि अभी हम उस पिता और पुत्र की तरह नंबरों को याद कर जिन्दगी के सफर को जीने योग्य नहीं हुए हैं। ऐसे में आपको कल की पोस्ट से दुबारा न गुजरना पड़े, इसलिए मैं कल की पोस्ट के कुछ हिस्सों को दुहरा रहा हूँ और आपको याद दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ कि चार नंबर पर जिन्दगी का कौन सा सिद्धांत था। 

मैंने कल जिन्दगी को सुगम तरीके से जीने के लिए एक नंबर पर लिखा था कि आदमी को स्वास्थ्य की बहुत परवाह करनी चाहिए। दूसरे नंबर पर लिखा था कि अच्छी जिन्दगी जीने के लिए इतना पैसा बैंक में होना चाहिए कि आप जब चाहे बाहर खाना खा पाएँ, सिनेमा देख पाएँ, समंदर और पहाड़ घूमने जा पाएँ। तीसरे नंबर पर लिखा था कि घर चाहे छोटा हो या बड़ा, वो आपका अपना होना चाहिए। और चौथे नंबर पर मैंने चर्चा की थी समझदार जीवन साथी की। मैंने लिखा था कि जिनकी जिन्दगी में समझदार जीवन साथी होते हैं, जो एक-दूसरे को ठीक से समझते हैं, उनकी जिन्दगी बेहद खुशहाल होती है, वर्ना जिन्दगी में सबकुछ धरा का धरा रह जाता है, सारी खुशियाँ काफूर हो जाती हैं। 

इसके अलावा छह प्वायंट और भी थे, लेकिन बहुत से लोग नंबर चार पर अटक गए। कहने लगे कि बाकी सब तो ठीक है, पर समझदार जीवन साथी कहाँ से लाएँ? और ढेरों लोगों ने माना कि जीवन साथी अगर समझदार मिल जाए, तो बाकी के नौ प्वांयट की उतनी अहमियत नहीं रह जाती। एक समझदार जीवन साथी के सहारे जिन्दगी हसीन हो सकती है, और एक नासमझ जीवन साथी बाकी के नौ प्वांयट की भी ऐसी की तैसी कर सकता है।

कई मजबूत दिल वाले तो मेरी पोस्ट पर ही अपना दुख बयाँ कर गये। कुछ कमजोर दिल वालों ने मुझसे इनबॉक्स में संपर्क किया और कहा कि जिन्दगी में अच्छा स्वास्थ्य है, पैसा है, अपना मकान है, बस जीवन साथी समझदार नहीं। ऐसे में हर सुबह उठ कर जिन्दगी को कोसना पड़ता है कि कहाँ आ कर फँस गए।

***

एक बार ओशो से किसी ने कहा था कि शादी के बाद उसकी जिन्दगी नर्क से भी बदतर हो गयी है। 

ओशो ने कहा था कि तुम्हारा विवाह अनैतिक है।

अनैतिक? जिसने ओशो के सामने अपनी समस्या रखी थी, वो हैरान था। विवाह अनैतिक कैसे? 

ओशो ने जवाब दिया था, “दो लोग जब बिना प्रेम के साथ रहते हैं, तो वो विवाह अनैतिक होता है। क्योंकि तुम अपने विवाह से खुश नहीं, इसलिए तुम्हारा विवाह अनैतिक हुआ। जो विवाह प्रेम से निकलेगा, वह अनैतिक नहीं रह जाएगा। हम में से ज्यादातर लोग विवाह से प्रेम निकालने की कोशिश करते हैं, जो बहुत बार नहीं हो पाता। इसीलिए विवाह एक बंधन है और प्रेम एक मुक्ति है। विवाह में आदमी साथ दिखलायी तो पड़ता है, लेकिन प्रेम में आदमी संग होता है। आसपास होना निकट होना नहीं होता, जुड़े रहने का अर्थ एक होना नहीं होता।”

किसी रिश्ते में अगर आदमी साथ रहे, पर संग न हो तो उसका जीवन दुखदायी होगा ही। आप खुद सोचिए कि अगर किसी मित्र से आपकी नहीं बनती तो आप उसके साथ कितनी देर रह पाते हैं? आप उसके साथ दो मिनट भी रहने को तैयार नहीं होते। लेकिन क्योंकि विवाह बंधन से बंधा है, इसलिए आपस में नहीं बनने की स्थिति में भी जिन्दगी साथ गुजारने पर मजबूर होते हैं। अगर वो सिर्फ प्रेम होता, तो उसमें मजबूरी नहीं होती। आप प्रेम करते हैं, तो संग रहते हैं। प्रेम खत्म होता है, तो अलग हो जाते हैं। ऐसे में ओशो ने एक बार ये भी कहा था कि विवाह पुनरुक्ति है, जबकि प्रेम एक मौलिक घटना है। विवाह करोड़ों लोग करते हैं, प्रेम बहुत कम लोग कर पाते हैं। जो बहुत कम लोग प्रेम कर पाते हैं, उनके लिए चार नंबर खुशी का द्वार है। जो लोग प्रेम नहीं कर पाते, उनके लिए चार नंबर सवाल है। 

मैं जानता हूँ कि प्रेम की कोई उम्र नहीं होती। किसी को किसी भी उम्र में किसी से प्रेम हो सकता है। मैं ये भी जानता हूँ कि आप में से जिन लोगों ने चार नंबर को लेकर सवाल उठाया है, वो चाह कर भी विवाह से मुक्त नहीं हो सकते। अब चाह कर भी मुक्त नहीं हो सकते, तो बेहतर यही होगा कि पुनरुक्ति को मौलिक मान कर उसी में प्यार की तलाश करें। मेरा मानना ये भी है कि शादी की बंजर से बंजर भूमि पर भी प्यार के फूल खिल सकते हैं, पर इसके लिए कोशिश दोनों ओर से संग-संग करनी होगी। संग-संग की गयी कोशिश में ही साथी संगी में बदल जाते हैं। 

जब साथ का मतलब संग हो जाएगा, जुड़े होने का मतलब एक होना हो जाएगा, तो जिन्दगी हसीन हो जाएगी। 

कोशिश करके देखिए, क्या पता बात बन ही जाए!   

‪(देश मंथन, 15 अप्रैल 2016)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें