पुणे स्टेशन के बाहर खड़ा 724 एफ स्टीम लोकोमोटिव : शकुंतला

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय चाणक्यापुरी दिल्ली के अलावा देश में कई जगह आपको रेलवे का इतिहास बताने वाले पुराने लोकोमोटिव खड़े दिखायी दे जाएँगे। पुणे रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक से बाहर निकलते ही बाईं तरफ नजर डालने पर एक नन्हा लोकोमोटिव आराम फरमाता नजर आता है।

चुपचाप खड़ा यह लोकोमोटिव भारतीय नैरोगेज रेल सिस्टम का इतिहास बयाँ कर रहा है। ये है इंजन नंबर 724 एफ। यह 1921 का बना हुआ लोकोमोटिव है। इसे देख कर यूँ लगता है मानो यह अभी चल पडेगा। इसे इंग्लैंड के मैनेचेस्टर स्थित नेस्मिथ एंड कंपनी ( Nesmith Gaskell and Co. Manchester England)  ने बनाया था। हालाँकि इस लोकोमोटिव कंपनी के बारे में अब कोई जानकारी नहीं मिलती। कंपनी की स्थापना 1836 में हुई थी। हेवी मशीन टूल्स और लोकोमोटिव बनाने वाली यह कंपनी 1940 में बंद हो चुकी है। 

अमूमन एफ क्लास के नैरोगेज के लोकोमोटिव विक्टोरियन काल खंड के बने हुए हैं। इनका टैंक 2-4-2 प्रकार का होता है। भारत लाये जाने के बाद इस लोकोमोटिव को 1923 में कुरडुवाड़ी पंढरपुर रेल खंड जो बारसी लाइट रेलवे का हिस्सा था, पर लंबे समय तक चलाया गया था। कई दशकों तक बारसी लाइट रेलवे में इस लोकोमोटिव ने सफलतापूर्वक अपनी सेवाएँ दीं।

बाद में इसे 1983 से मुर्तुजापुर यवतमाल खंड में चलाया गया। तकरीबन 73 साल सेवा देने के बाद यह इंजन 13 अप्रैल 1994 को रिटायर हुआ। हालाँकि यह लोकोमोटिव हरगिज रिटायर होने के लायक नहीं था। पर डीजल इंजन की बढ़ती लोकप्रियता के कारण से बेपटरी होना पड़ा। बाद में 23 दिसंबर 1995 को इस लोकोमोटिव को पुणे रेलवे स्टेशन के बाहर आम लोगों के दर्शन के लिये स्थापित कर दिया गया, जिससे की आते जाते लोग रेलवे के इतिहास से वाकिफ हो सकें। वास्तव में यह लोकोमोटिव पुणे रेलवे स्टेशन के बगल में स्थित  इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल इंजीनयरिंग (IRICEN) के परिसर में मुख्यद्वार के बगल में रखा गया है। 1959 में स्थापित यह रेलवे का संस्थान है जो रेलवे के सिविल इंजीनियरों को इन हाउस प्रशिक्षण प्रदान करता है। यहाँ रेलवे के आईआरएसई कैडर के अधिकारी प्रशिक्षण पाते हैं।

पुणे रेलवे स्टेशन के बाहर स्थित इस लोकोमोटिव के पास लगे बोर्ड पर हिंदी में इस इंजन के गौरवशाली इतिहास के बारे में जानकारी दी गयी है। इस लोकोमोटिव को भारतीय रेल में शकुंतला नाम दिया गया था। शकुंतला का गौरवशाली इतिहास पढ़ कर आते-जाते रेल प्रेमी गर्व करते हैं।

(देश मंथन, 03 अप्रैल 2016)

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