संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
इस कहानी को लिखने से पहले मैंने कम से कम हफ्ता भर इंतजार किया है। चाहता तो एक हफ्ता पहले ही पूरी कहानी आपको सुना सकता था। महीना भर पहले मैं अपनी उस परिचित के घर गया था, जिनकी बेटी की शादी कुछ ही दिन पहले हुई है। शादी खूब धूम-धाम से हुई थी, लेकिन शादी के बाद ससुराल में अनबन शुरू हो गयी। जरा-जरा सी बात पर झगड़े होने लगे। मेरे पास लड़की की माँ का फोन आया था कि सोनू की उसके ससुराल में नहीं बन रही।
“पर क्यों नहीं बन रही? अभी कुछ ही दिन पहले तो शादी हुई है।”
“हाँ, कारण तो मुझे भी नहीं पता, लेकिन वो शायद इतने बड़े घर में खुद को एडजस्ट नहीं कर पा रही। उसे सास-ससुर, देवर, ननद वाले घर में रहने की आदत नहीं। वो अकेली पली है, मेरे ख्याल से उसे वहाँ वो आजादी नहीं मिल रही। आप प्लीज एक बार उससे मिल लीजिए, आप बात करेंगे तो सच्ची बात सामने आएगी। मैं नहीं चाहती कि ये शादी टूटे।”
मैं बहुत चाह कर भी सोनू के घर नहीं जा सका। कुछ मेरी व्यस्तता समझ लीजिए और कुछ ऐसे कि किसी के घर बिना उसकी ओर से निमंत्रण आये नहीं जाना चाहिए, ऐसा मुझे लगा। सोनू की मम्मी ने मुझसे जरूर संपर्क किया था, पर सोनू ने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा था।
हफ्ता पहले की बात है सोनू अपना सूटकेस लेकर मम्मी के घर चली आयी, बस यही वो दिन था जब मेरी कहानी आपके पास पहुँच जानी चाहिए थी। पर मैंने इंतजार किया। मैंने इंतजार किया, कहानी को मंजिल तक पहुँचने देने का। दरअसल मैं हफ्ता पहले सोनू से मिलने उसकी मम्मी के घर गया था। सोनू बहुत उदास थी। वो बात करते हुए लगभग रो रही थी। वो कह रही थी कि उसका ससुराल उसकी इच्छा के मुताबिक बिल्कुल नहीं। सास बहुत कड़क स्वभाव की हैं। बेटा उन्हें कुछ बोलता नहीं। घर में सास की दादागीरी चलती है।
मैंने कहा कि यह तो हर घर की कहानी है। इसमें कुछ भी नया नहीं। तुम अपनी मूल समस्या बताओ। ठीक से याद करो कि वो कौन सी बात है, जिस पर तुम्हारी सास तुम्हें टोकती हैं और वो कौन सी बात है जिस पर तुम्हें सबसे अधिक गुस्सा आता है।
सोनू ने कहा, “वो हर बात पर टोकती हैं। वो कहती हैं कि मैं देर तक सोती हूँ। वो कहती हैं कि मैं जोर-जोर से हँसती हूँ। मेरी हर आदत से उन्हें नफरत है। वो सारा दिन मुझे ताने मारती हैं। पूरा घर मूक दर्शक बन कर देखता है। वहाँ मेरा दम घुटता है। मैं अब उनके साथ और नहीं रह सकती।”
“तो तुम्हारी क्या अपेक्षाएँ हैं? तुम क्या चाहती हो? तुम्हारी सास ऐसा क्या करतीं जिससे तुम्हें खुशी मिलती?”
“कुछ नहीं। बस वो मेरी जिन्दगी में दखल देना छोड़ दें। उनका मुँह देखते ही मुझे गुस्सा आ जाता है।”
अब असली बात सामने आयी थी।
दरअसल बहुत बार हम मनगढ़ंत अपेक्षाएं दूसरों से पाल लेते हैं और फिर जब हमारी वो अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो हमें गुस्सा आता है। गुस्सा हमें अपनी कसौटियों पर आता है, दोष हम सामने वाले में ढूंढते हैं। सोनू की सास तो अपनी बहू से सिर्फ इतना ही कह रही है कि सुबह जल्दी जागना चाहिए, पर सोनू को सास का चेहरा ही पसंद नहीं।
मैंने सोनू से कहा कि क्या तुमने अपनी सास को बताया कि तुम्हें उनका चेहरा ही पसंद नहीं?
“नहीं, ये कैसे बताऊंगी? आप भी कमाल ही करते हैं। भला ये भी कोई बताने वाली बात हुई?”
“क्यों, तुम्हारी सास ने तो तुम्हें बताया न कि तुम देर तक सोती हो, ये बात उन्हें अच्छी नहीं लगती। तुम जोर-जोर से ठहाके लगा कर हँसती हो, यह भी उन्हें शालीनता के खिलाफ लगता है।”
“हाँ, उन्होंने बताया।”
“तो तुम भी बताओ कि तुम्हें उनका मुँह पसंद नहीं।”
“आप पहेलियाँ मत बुझाएँ संजय जी, साफ-साफ कहिए क्या कहना चाह रहे हैं?”
“तुम लोगों को उन कसौटियों पर कसना बंद कर दो, जो तुमने अपने मन में पाल रखी हैं। तुम्हारी सास तुमसे जो कह रही हैं, वो एक सामान्य सी बात है। तुम सुबह नहीं जग सकती, इसकी वजह उन्हें बता दो। तुम्हारी सास ने भी स्वनिर्धारित अपेक्षाएँ तुमसे पाल रखी हैं, जो तुम चाहो तो उन्हें भी आसानी से पूरा कर सकती हो।
पर तुमने अपनी सास से जो अपेक्षाएँ अपने मन में पाली हैं, उसे पूरा करना उनके बस का नहीं। तुमने अपने भीतर उनके प्रति नकारात्मक भाव पाल लिए हैं। ऐेसे में उनकी तरफ से तुम्हारे साथ रिश्ता प्रगाढ़ करने की हर कोशिश व्यर्थ साबित होगी। पर तुम अपनी कोशिशों से उनका दिल जीत सकती हो। बदलाव पहले तुम्हें अपने भीतर लाना होगा, फिर उधर से किसी तरह की उम्मीद करनी होगी। पर यह बदलाव तुम्हारे भीतर आएगा सास के प्रति निगेटिव सोच को खत्म करके।”
मेरी बात को सोनू ने किस तरह समझा, मुझे नहीं पता।
पर उसी दिन मेरी परिचित का फोन आया था कि सोनू अपने ससुराल लौट गयी है।
मैंने हफ्ता भर इंतजार किया अपनी कहानी को आप तक पहुँचनाने के लिए। कल देर रात सोनू का फोन आया था, कह रही थी कि मम्मी जी बहुत अच्छी हैं। आपको खाने पर बुलाया है।
मुझे खाने पर बुलाया है, मतलब मेरी कहानी आप तक पहुँचने के लायक हो गयी है। सोनू ने यह समझ लिया है कि किसी की भी खुशी सही व्यक्ति को ढूंढने में नहीं, बल्कि सही व्यक्ति बनने में छिपी है। वो समझ गयी है कि जो नकारात्मक भाव को छोड़ कर अपनी जिन्दगी का उद्देश्य अपने भीतर की शांति और आनंद को बना लेता है, उसे तकलीफ नहीं होती। वो यह भी समझ गयी है कि प्रेम पाने का एक मात्र उपाय यही है कि प्रेम करो।
(देश मंथन 15 सितंबर 2016)