Sunday, November 24, 2024
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हम जो देते हैं, वही पाते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

इंदिरा गाँधी कहा करती थीं, “बातें कम, काम ज्यादा।” मैं तब उनके इस कहे का मतलब नहीं समझ पाता था। पर एक दिन पिताजी ने मुझे समझाया कि जो लोग ज्यादा बातें करते हैं, वो काम कम करते हैं। आदमी को काम अधिक करना चाहिए। इससे आदमी का, देश का, समाज का और दुनिया का विकास होता है। मेरी समझ राजनीतिक तो थी नहीं, इसलिए मैंने पिताजी से पूछ लिया था कि आखिर इंदिरा गाँधी को ऐसा कहने की जरूरत ही क्यों आ पड़ी? अगर यह सही है कि काम करने से आदमी का विकास होता है, तो ये बातें किताब में लिखी होनी चाहिए थी। मेरे स्कूल के मास्टर साहब को बतानी चाहिए थी।

दिल्ली वालों का अभी कुछ होना बाकी है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

बहुत साल पहले जब मैं स्कूल में पढ़ता था, जय प्रकाश नारायण ने बिहार में स्कूल बंद करा दिये थे। 

सोनिया जी, यह न 1975 है, न 1986, इसलिए कोर्ट का सम्मान करें

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

सोनिया गाँधी सही कह रही हैं कि वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं। वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं, इसीलिए कोर्ट का भी आदर नहीं कर रही हैं। इंदिरा गाँधी ने भी 1975 में अपने निर्वाचन को अवैध करार देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को नहीं माना था और देश में इमरजेंसी लगा दी थी। उस वक्त उन्होंने विपक्ष के साथ जो किया था, राजनीतिक दुर्भावना और दुश्मनी उसे कहते हैं, न कि भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट समन कर दे तो उसे कहते हैं।

श्रीमती गाँधी की हत्या और क्रिकेट सिरीज रद्द

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

आज 31 अक्तूबर है, जो भारतीयों को मिश्रित अनुभूति देता है। एक ओर हैं देश को एकता के सूत्र पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल, जिनका कि आज जन्मदिन है और जिसे यादगार बना दिया मोदी सरकार ने देश में एकता दौड़ के आयोजन से तो दूसरी ओर आज ही इंदिरा गाँधी का शहादत दिवस भी है।

पाकिस्तान इंदिराजी से किस कदर खौफजदा था?

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

दो राय नहीं कि मैं कांग्रेस विरोध की संतान हूँ पर यह भी सच है कि महाराजा रणजीत सिंह के बाद देश को अंतरराष्ट्रीय विजय (पूर्वी पाकिस्तान का नाम नक्शे से मिटा कर बांग्लादेश का जन्म हुआ 1971) दिलाने वाली वीरांगना श्रीमती इंदिरा गाँधी का निजी तौर पर प्रशंसक भी हूँ, खास तौर पाकिस्तान के मोर्चे पर उनकी तैयारी की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम होगी।

ओय गुइयाँ, फिर जनता-जनता!

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

क्या करें? मजबूरी है! अभी ताजा मजबूरी का नाम मोदी है! यह जनता खेल तभी शुरू होता है, जब मजबूरी हो या कुर्सी लपकने का कोई मौका हो! इधर मजबूरी गयी, उधर पार्टी गयी पानी में!

अबकी बार, क्या क्षेत्रीय दल होंगे साफ?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

राजनीति से इतिहास बनता है! लेकिन जरूरी नहीं कि इतिहास से राजनीति बने! हालाँकि इतिहास अक्सर अपने आपको राजनीति में दोहराता है या दोहराये जाने की संभावनाएँ प्रस्तुत करता रहता है!

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