Tag: संजय सिन्हा
मर्द

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जून का महीना मेरी यादों का महीना होता है। आज जिन यादों से मैं गुजरने की सोच रहा हूँ, उस पर तो पूरी किताब भी लिख सकता हूँ। हालाँकि यादों की जिन कड़ियों से मैं गुजरने की अभी सोच रहा हूँ, वो बेशक एक दस्तावेज बन सकता है पर उसे ऐतिहासिक दर्जा कभी नहीं मिल सकता, क्योंकि चौथी-पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा क्या इतिहास लिख पायेगा, और कोई क्यों उसपर यकीन कर पायेगा।
प्यार को प्यार ही रहने दो

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
“माँ, उठो। माँ, सुनो मैं क्या पूछ रहा हूँ। दो दिन पहले मैंने पोस्ट में लिख दिया था कि पांचाल के नृपति द्रुपद ने कृष्ण को अपनी बेटी द्रौपदी से विवाह के लिए आमंत्रित किया था, तो कुछ लोगों ने नाराजगी जताई और कहा कि मैं धर्म और पौराणिक कहानियों के विषय में कुछ नहीं जानता, केवल काल्पनिक कहानी लिख रहा हूँ।
अबूझ पहेली

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
हमारे फेसबुक परिजनों में एक हैं Shaitan Singh Bishnoi। मैंने एक दो बार जब कभी ये लिखा कि कृष्ण और द्रौपदी के बीच का रिश्ता कभी सखा-सखी का था, कभी भाई-बहन का और कभी प्रेमी-प्रेमिका का, तो शैतान सिंह जी ने मुझसे कहा कि मैं कभी न कभी इस बात की खुल कर चर्चा करूँ कि आखिर ऐसा कैसे संभव है कि एक ही स्त्री में कोई हर रूप को तलाश ले। यकीनन उन्हें पता होगा कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अर्जुन से ब्याही गयी थीं, इस तरह द्रौपदी भी कृष्ण की बहन लगीं।
मन की कमजोरी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
“आओ संजू, मेरे पास बैठो।”
माँ मुझे पास बुला कर मेरा सिर सहला रही थी।
औकात

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने माँ से पूछा था, “माँ, औकात क्या होती है?”
मोह उम्र में ज्ञान से बड़ा है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अब आज की पोस्ट पढ़ते हुए मुझे कोसने मत लगिएगा कि वो कहानी मैं कहाँ से लेकर आ गया हूँ, जिसे आप बचपन से सुनते चले आ रहे हैं। पर हर पुरानी कहानी का एक संदर्भ होता है। वजह होती है, पुरानी कहानी को नये मौके पर सुनाने की।
सारा दिन दूसरे के इशारे पर गुलाटियाँ मारता है आदमी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे फिजिक्स के टीचर डॉर्विन का सापेक्षता का सिद्धान्त पढ़ा रहे थे।
गरम हवाओं ने पूरब की शीतलता में उष्णता भर दी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
“गरम हवाओं ने पूरब की शीतलता में कब और कैसे उष्णता भर दी, हम देखते रह गये…”
मैंने कल यहाँ फेसबुक पर अपनी पोस्ट में लिखा था कि कैसे मैं रेडियो मिर्ची के एक शो में गया, तो रेडियो जॉकी शशि ने मुझे बताया कि एक बुजुर्ग दंपति, जिनके तीनों बच्चे अमेरिका में सेटल हो गये हैं, पटना में अकेले जिन्दगी गुजार रहे हैं।
यही है जिन्दगी, यही है रिश्ता

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
करीब 30 साल पहले मैं अपनी जन्मभूमि से दूर जा रहा था तब मेरी खुली आँखों में हजारों यादें सिमटी थीं।
संयोगों का एक विघटन है जिन्दगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कभी रुक कर सोचिएगा कि जिन्दगी क्या है। जिन्दगी चन्द यादों के सिवा कुछ नहीं। यादें बचपन की, यादें जवानी की, यादें दादी-नानी की कहानियों की और यादें माँ की लोरियों की। यादें अपने जन्म की।



संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :





