औकात

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मैंने माँ से पूछा था, “माँ, औकात क्या होती है?”

माँ ने बहुत गंभीर निगाहों से मुझे देखने की कोशिश की। “ये क्या सवाल पूछ रहे हो तुम?”

“माँ, जब कृष्ण आखिरी बार कौरवों के पास पांडवों का पैगाम लेकर हस्तिनापुर गए थे, तब दुर्योधन ने उनसे पांडवों की औकात पूछी थी। इसीलिए मैंने आपसे जानना चाहा कि दुर्योधन ने औकात क्यों पूछी।” 

“औकात आदमी की कीमत होती है, बेटा।” 

“आदमी की कीमत? क्या आदमी की भी कीमत लगाई जा सकती है?”

“हाँ बेटा, इस संसार में हर चीज की कीमत होती है।”

कृष्ण हस्तिनापुर में बैठे थे। सामने धृतराष्ट्र, पितामह, द्रोणाचार्य और ढेर सारे गणमान्य बैठे थे। कृष्ण ने दुर्योधन को पांडवों का पैगाम सुनाया। “युद्ध से कोई लाभ नहीं। तुम आधा राज्य उन्हें नहीं दे सकते तो पाँच गाँव ही उन्हें दे दो। वो जी लेंगे, खा लेंगे। पर वो युद्ध नहीं चाहते। मैं युद्ध नहीं चाहता। युद्ध में सिर्फ योद्धा नहीं मरते, वो लोग भी मरते हैं जिनका कोई कसूर नहीं होता। इसलिए तुम युद्ध को टालने की कोशिश करो, दुर्योधन।”

“युद्ध को टालना असंभव है। तुम तो रणछोड़ हो, कायर हो। तुम में जरासंध से लड़ने का दम नहीं था, कृष्ण। तुम्हीं ने पांडवों को सुझाया होगा कि युद्ध मत करो। पाँच गाँव लेकर संतुष्ट हो जाओ। पांडव कायर हैं और कायरों की कोई औकात नहीं होती। जिनकी कोई औकात नहीं होती, उन्हें पांच गांव तो क्या, सुई की नोक के बराबर भूमि भी मैं नहीं दूंगा। जाओ, जाकर अपने पांडवों को मेरा पैगाम दे देना, कहना कि अगर औकात हो तो मैदान में मुझे परास्त करके हस्तिनापुर ले जाएँ, और नहीं तो जमीन पर रेंगने वाले कीड़े की तरह अपनी जिन्दगी कहीं छिप कर गुजारें।”

***

“माँ, महाभारत की कहानी तो आपने मुझे सुनायी है। मुझे पता है कि धृतराष्ट्र, पितामह, विदुर, द्रोण सबने दुर्योधन को समझाने की कोशिश की थी कि युद्ध से कभी किसी को कोई लाभ नहीं हुआ है। लेकिन दुर्योधन पूरी तरह शकुनी के शिकंजे में था। मुझे तो संदेह है, माँ कि शकुनी दरअसल दुर्योधन का हितैषी था ही नहीं।”

माँ हंसने लगी। कहने लगी कि बहुत गहरा सवाल उठा दिया है, तुमने। मैं इस विषय पर बाद में बात करुंगी। लेकिन तुम औकात को लेकर ज्यादा गंभीर मत हो। इसका संबंध आर्थिक स्थिति से नहीं, मानसिक स्थिति से होता है। आदमी के लालन-पालन से होता है। आदमी की सोच से होता है। बड़े से बड़ा आदमी भी छोटी सोच का हो, तो उसकी औकात कुछ नहीं होती। 

“माँ, आज पहली बार मेरी समझ में ये औकात वाली बात नहीं आ रही। आज महाभारत की कहानी को छोड़ देता हूँ। आज औकात की कहानी सुना दो।”

***

“सुनो बेटा। कृष्णदेव राय नामक एक राजा थे। उनके दरबार में एक बहुत ही विद्वान और ईमानदार व्यक्ति था। उसका नाम था तेनाली राम। 

तेनाली बहुत ही समझदार और वाकपटु था। राज्य के तमाम दरबारी तेनाली से जला करते थे। वो हमेशा इसी कोशिश में रहते कि कैसे तेनाली को नीचा दिखलाया जाए। एकबार बहुत से दरबारियों ने मिल कर तेनाली के खिलाफ साजिश रचने की कोशिश की। इन सभी लोगों ने मिल कर राज्य में जूते सिलने वाले एक व्यक्ति को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वो राजा के दरबार में आकर तेनाली की शिकायत करे, कहे कि तेनाली उसे बहुत परेशान करता है। 

जूता सिलने वाला उनके षडयंत्र में शामिल हो गया। सारे दरबारी बहुत खुश हो गये कि आज तेनाली को मजा चखाया जायेगा। 

जूता सिलने वाला तय समय पर राजा के पास पहुँचा।

“राजन, मैं लुट गया। बर्बाद हो गया। आपके तेनाली ने मुझसे पैसे छीन लिये।”

“साफ-साफ बताओ क्या हुआ?”

“हुजूर! तेनाली ने आज धौंस देकर, मेरी सारी कमाई छीन ली। हुजूर मैं लुट गया, बर्बाद हो गया।”

तेनाली को दरबार में बुलाया गया। 

सारे दरबारी मुस्कुरा रहे थे। आज तेनाली को खूब डाँट पड़ेगी। आज तेनाली नहीं बचेगा। आज तेनाली को हो सकता है राज्य से निकाल ही दिया जाए।

तेनाली सारा खेल समझ गये। 

राजा ने तेनाली से पूछा कि क्या तुम इसे पहचानते हो।

तेनाली ने जवाब दिया, “हाँ राजन, मैं पहचानता हूँ।”

“तो, क्या ये सच है कि तुमने इसे धमका कर इसके सारे पैसे छीन लिये?”

“राजन! अगर ये ऐसा कह रहा है, तो सच ही होगा। मुमकिन है मैंने ऐसा किया हो।”

“इसका मतलब तुम अपना अपराध स्वीकार करते हो। तुम मानते हो कि ऐसा हुआ है। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।”

“राजन! मुझे सजा मिलनी ही चाहिए। लेकिन मेरा अनुरोध है कि आज इस सजा का हक आप इस जूते सिलने वाले को दें। मैंने अपराध इसके साथ किया है। तो ये जो भी सजा मेरे लिए मुकर्रर करेगा, मैं खुशी से उसे स्वीकार कर लूंगा।”

राजा समझ गये कि इस पूरे मामले में कुछ पेंच है, इसीलिए तेनाली ने उसे सजा देने का अधिकार देने की बात की है।

उन्होंने जूते सिलने वाले से कहा कि अपराध तुम्हारे साथ हुआ है, तुम क्या सजा देना चाहोगे तेनाली को।

जूते सिलने वाला बेचारा बहुत गरीब था। वो भारी उलझन में पड़ गया कि क्या सजा दे। बहुत सोच विचार कर उसने कहा कि महाराज, इसने मेरे दो पैसे छीने थे, मैं चाहता हूँ कि इस पर दो पैसों का दंड लगाया जाए।

***

तेनाली मुस्कुराने लगे। दो पैसों का दंड भरा। सारे दरबारी मुँह ताकते रहे। सोचा था कि आज तेनाली फँसेगा। लेकिन तेनाली तो दो पैसे में बच गया।

***

सब चले गए तो राजा ने तेनाली से पूछा कि तुमने उसे सजा देने की बात क्यों कही थी। 

तेनाली ने कहा कि महाराज हर व्यक्ति की एक औकात होती है। जिन दरबारियों ने मेरे खिलाफ उस व्यक्ति को खड़ा किया था, उस आदमी की रोज की आमदनी ही आधा पैसे की है। उसने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाल कर जितना सोच सकता था, सोच लिया। उसने अपनी औकात से चार गुना की सजा मुझे सुना दी और खुश हो गया। यही सजा आप सुनाते तो मुझे बहुत भारी पड़ जाती। 

*** 

बुद्धिमान आदमी सिर्फ अपनी ही औकात नहीं समझता। सामने वाले की औकात भी समझता है। जो सामने वाले की औकात का सही मूल्यांकन नहीं कर पाते, वो कुरुक्षेत्र की मिट्टी में मिल जाते हैं।

(देश मंथन 18 जून 2015)

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