संजय सिन्हा, संपादक, आजतक
दो दिन पहले मैंने एक तस्वीर यहाँ फेसबुक पर डाली थी, जिसे मैंने ‘हमर’ कार के साथ खड़े होकर खिंचवायी थी।
मेरे एक परिचित के पास ये गाड़ी है। मैंने उनसे चलाने के लिए यह गाड़ी मँगायी थी। मुझे गाड़ियों का बहुत शौक है। मैं हमेशा नयी-नयी गाड़ियाँ चलाता हूँ, उनकी तकनीक को समझने की कोशिश करता हूँ। बीएमडब्लू और मर्सडीज कारें मेरे पास हैं।
पर आज मैं आपको कार की कहानी नहीं सुनाने जा रहा।
आज मैं आपको राहुल गाँधी ने कल संसद में जो भाषण दिया, उसकी कहानी भी नहीं सुनाने जा रहा। आज मैं आपको सिर्फ यह बताने जा रहा हूँ कि जिस दिन मैंने ‘हमर’ कार के साथ अपनी तस्वीर फेसबुक पर डाली थी, उस दिन मेरे एक परिजन ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा था- “दिखते तो आप बहुत भोले हैं, पर अमीर हैं।”
मैं उनकी प्रतिक्रिया को पढ़ कर बहुत देर तक हँसता रहा था। सोचता रहा था कि मेरे परिजन ने कितनी मासूमियत से अपनी बात कहने की कोशिश की है। उनके मन में बैठा है कि अमीर आदमी भोले नहीं होते। या जो भोला होगा, वो अमीर नहीं हो सकता।
क्या अमीर होने का मतलब दुष्ट, बदमाश होना जरूरी होता है?
***
जब मैं छोटा था और स्कूल में पढ़ता था तब हम सभी का सपना होता था कि बड़े होकर हमें अच्छी नौकरी मिलेगी, हमारे पास पैसे होंगे, हम अमीर होंगे। मेरे पिताजी जब स्कूल जाते रहे होंगे, तब उनका सपना भी इसी तरह का रहा होगा। उनके दोस्तों का सपना भी यही रहा होगा। हम सबका सपना यही होता है कि हम पढ़-लिख कर बड़े होंगे तो कुछ ऐसा काम करेंगे, जिससे हमारे पास पैसे होंगे, हम अमीर बनेंगे।
तो क्या इसका अर्थ मुझे ये लगाना चाहिए कि हम सबके दिल में ये ख्याल रहा होगा कि जब हम बड़े होंगे, हम अच्छी नौकरी करेंगे, हमारे पास पैसे होंगे, तो हम भोले नहीं रहेंगे? हम दुष्ट व्यक्ति बन जाएँगे?
कतई नहीं।
अमीर बनना, सुविधापूर्ण जिन्दगी जीना हर आदमी का ख्वाब होता है, हर आदमी का ख्वाब होना चाहिए।
***
जिन दिनों मैं अमेरिका में था, मैंने देखा था कि वहाँ बहुत अमीर घरों में भी घर के काम करने वाले नौकर नहीं होते। बहुत बड़े-बड़े लोगों के पास ड्राइवर नहीं होते थे। मैं जिस शहर में था, उन दिनों माधुरी दीक्षित भी पति के साथ वहीं रहती थीं। मैंने उन्हें भी कई बार घर के सामान खरीद कर खुद उठाए हुए देखा है।
वहाँ आदमी काम के आधार पर छोटा या बड़ा नहीं माना जाता। हर व्यक्ति और उसके काम की इज्जत है। कोई फिल्म स्टार है, तो कोई फायरमैन। दोनों अपनी-अपनी जगह संतुष्ट हैं। दोनों एक-दूसरे को इज्जत की निगाहों से देखते हैं।
पर हमारे यहाँ?
हमारे यहाँ जानबूझ कर वर्गभेद पैदा किया जाता है। जानबूझ कर हमारी सरकारें बहुत से लोगों को गरीब बने रहने देना चाहती हैं। उन्हें लगता है कि हर आदमी अगर अमीर बन गया तो उनकी इज्जत कम हो जाएगी। इसीलिए वो गरीबी को सहलाते हैं। बड़े-बड़े सपने दिखलाते हैं कि एक दिन तुम अमीर बनोगे। पर साथ ही यह भी फैलाते हैं कि अमीर लोगों के पास मखमली बिस्तर तो होते हैं, पर नींद नहीं होती। अमीर लोग खुश नहीं होते। अमीर लोग गरीबों का खून चूसते हैं।
ये सारी कहानियाँ वो आपको सुनाते हैं, पर खुद अमीर बन जाते हैं, बनना चाहते हैं।
***
मुझे नहीं पता कि मैं अमीर हूँ या नहीं। पर आज मैं आपको एक सच बताता हूँ। बात फेसबुक परिजन की नहीं। मेरे दफ्तर में मेरे साथ उठने-बैठने वाले मेरे मित्र भी मानते हैं कि मैं उनकी तुलना में अधिक अमीर हूँ। मेरे पास बड़ी गाड़ियाँ हैं, इसीलिए।
मेरे मित्र, रोज सिगरेट पीते हैं। इस बार के बजट के बाद वो मुझे बता रहे थे कि उनकी एक सिगरेट की कीमत करीब 13 रुपये है। वो दिन में करीब बीस सिगरेट पीते हैं। मतलब रोज के 260 रुपये। महीने में करीब 7,800 रुपये की सिगरेट वो पीते हैं। किसी दिन एकाध ऊपर नीचे हो जाए, कोई साथ मैं सिगरेट माँग बैठा तो यह आँकड़ा दस हजार रुपये प्रति माह का हो जाता है।
मुमकिन है रोज शराब पीने वाले लोगों की गिनती कम हो, पर मेरे वो मित्र ‘वोदका’ के शौकीन हैं, और करीब तीन सौ रुपये की शराब भी वो रोज पी ही लेते हैं। इस तरह शराब पर उनका खर्च कम से कम दस हजार रुपये प्रति माह का है।
अब देखिए। वो महीने में करीब बीस हजार रुपये अपने इस शौक पर खर्च करते हैं।
ऐसे में अगर मैं बीस हजार रुपये अपने इन शौक पर खर्च न करके अगर किस्तों में गाड़ी ही खरीद लूँ, तो मैं अमीर हो गया, वो गरीब हो गये?
***
आप भी मेरी तरह अमीर बनिए। अगर आपको मेरे मित्र की तरह कोई ऐसा-वैसा शौक है, तो उसे छोड़ कर आप मेरी तरह अमीर बन सकते हैं, और भोले भी नजर आ सकते हैं।
(देश मंथन, 03 मार्च 2016)