पूर्वोत्तर जाने वाली ट्रेनों की सुध लें रेलमंत्री जी..

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

रेलवे में यात्री सुविधाओं में सुधार और स्टेशनों को चमकाने की खूब बात की जाती है। पर इसका असर देश की राजधानी दिल्ली से पूर्वोत्तर की ओर जाने वाली ट्रेनों में बिल्कुल नहीं दिखायी देता। लालगढ़ से ढिब्रूगढ़ तक जाने वाली अवध आसाम एक्सप्रेस, आनंद विहार से गुवाहाटी जाने वाली नार्थ इस्ट एक्स, दिल्ली से ढिब्रूगढ़ जाने वाली  ब्रह्मपुत्र मेल, न्यू अलीपुर दुआर तक जाने वाली महानंदा एक्सप्रेस ये सभी दैनिक ट्रेनें उपेक्षा का शिकार हैं। किसी में एलएचबी कोच नहीं लगे। मोबाइल चार्जर दिखायी नहीं देते। ब्रह्मपुत्र मेल के टायलेट में तो जाले लगे दिखायी दिए। मानो कोच की सफाई महीनों से नहीं हुई हो। हालाँकि ये सारी ट्रेनें भारतीय रेल को राजस्व तो खूब देती हैं पर इनसे सौतेला व्यवहार क्यों। यह सवाल इन ट्रेनों में सफर करने वाले बार-बार पूछते हैं।

आठ राज्य उपेक्षा के शिकार

आठ राज्यों में अपनी सेवाएँ देने वाले तमाम फौजी इन ट्रेनों से अपने गंतव्य को जाते हैं। यहाँ तक की ढिब्रूगढ़ राजधानी भी उपेक्षा की शिकार ट्रेनों में शामिल है। कुछ साल पहले शुरू हुई पूर्वोत्तर संपर्क क्रांति की रैक भी बहुत पुरानी और घटिया किस्म की है। ये ट्रेन हफ्ते में तीन दिन चलती है। पर इसकी सफाई व्यस्था भी घोर उपेक्षा का शिकार है। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 16 से देर रात ब्रह्मपुत्र मेल चुपके से रवाना हो जाती है। इस प्लेटफार्म पर पहुँच कर भी आपको लगता है कि आप किसी छोटे शहर के बदरंग रेलवे स्टेशन पर पहुँच चुके हैं।

मैंगो सिटी मालदा तक ब्रह्मपुत्र मेल से

मुझे कई बार ब्रह्मपुत्र मेल ने मंजिल तक पहुँचाया है। इस बार हमारी मंजिल थी पश्चिम बंगाल का शहर मालदा टाउन। 76वीं इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस में शामिल होने बड़ी संख्या में इतिहासकार इसी ट्रेन से जा रहे थे।

मालदा टाउन से पहले आता न्यू फरक्का रेलवे जंक्शन। यहाँ पर गंगा नदी पर पुल और बैराज (बांध) बना है। रेल पुल के ठीक बगल में सड़क पुल भी है। पुल की लंबाई दो किलोमीटर 200 मीटर है। यह पुल 1971 से अपनी सेवाएँ दे रहा है। रेल की पटरियाँ और सड़क साथ-साथ कदम ताल करते दिखायी देते हैं। ऐसा पुल पहली बार देखा मैंने। यहाँ गंगा नदी पर बाँध 1975 में बन कर तैयार हुआ। एक फीडर कैनाल से गंगा का पानी यहाँ से हुगली नदी में पहुँचाया जाता है। 

फरक्का के बाद आ जाती हमारी मंजिल मालदा टाउन। बंगाल का सीमांत शहर। रेलवे स्टेशन काफी बड़ा है। कुल 5 प्लेटफार्म हैं। यहां रेलवे का डीआरएम दफ्तर भी है।

दिसंबर की ठंडी सुबह। हमारा ठिकाना बना शहर के रेलवे रोड पर होटल खोनिस रेसीडेंसी। मालदा शहर में रथबारी चौक प्रमुख जंक्शन है। यहाँ 1944 का स्थापित मालदा कालेज की इमारत दिखायी देती है। रथबारी में एनएच 34 क्रास करती है, जहाँ से बंगाल के तमाम बड़े शहरों के लिए बसें मिल जाती हैं। हमारे मालदा से लौटने के बाद शहर में तनाव और हिंसा की खबरें आयीं। यह सुन कर दुख हुआ। वास्तव में मालदा की पहचान मैंगो सिटी के तौर पर है। लोकप्रिय मालदह आम का रिश्ता मालदा है। वैसे शहर में आप कई किस्म की बंगाली मिठाइयों का स्वाद ले सकते हैं। भला रोज रात को खाने के बाद मिष्टी खाने वाले दंगाई कैसे हो सकते हैं।

(देश मंथन, 03 मार्च 2016)

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