Tag: चिट्ठी
रिश्तों का पाठ
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
बचपन में मुझे चिट्ठियों को जमा करने का बहुत शौक था। हालाँकि इस शौक की शुरुआत डाक टिकट जमा करने से हुई थी। लेकिन जल्द ही मुझे लगने लगा कि मुझे लिफाफा और उसके भीतर के पत्र को भी सहेज कर रखना चाहिए। इसी क्रम में मुझे माँ की आलमारी में रखी उनके पिता की लिखी चिट्ठी मिल गयी थी। मैंने माँ से पूछ कर वो चिट्ठी अपने पास रख ली थी। बहुत छोटा था, तब तो चिट्ठी को पढ़ कर भी उसका अर्थ नहीं पढ़ पाया था, लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया बात मेरी समझ में आती चली गयी।
रिश्ते हैं, लेकिन कोई रिश्ता बचा नहीं
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कई साल पहले एक रात हमारे घर की घंटी बजी।
तब हम पटना में रहते थे। आधी रात को कौन आया?
पिताजी बाहर निकले। सामने दो लोग खड़े थे। एक पुरुष और एक महिला।
गुमनाम लिफाफे का अनजाना संदेश
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक अनपढ़ आदमी के नाम कहीं से एक चिट्ठी आयी। अनपढ़ आदमी अकेला था। न आगे नाथ न पीछे पगहा। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी ने उस अनपढ़ आदमी के नाम घर पर चिट्ठी भेजी हो।