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जो आतंकी मारे गये, उन्हें जान तो लें
आवेश तिवारी, पत्रकार :
अगर भोपाल में मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की करतूतों को लिखना शुरू करूँ तो एक पूरा उपन्यास बन जायेगा। कुछ मित्रों का कहना है कि किसी अंडरट्रायल को आतंकी घोषित कैसे किया जा सकता है? बिल्कुल किया जा सकता है।
दिल में दिमाग वालों से डर लगता है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बहुत साल पहले हम पटना से भोपाल एक शादी में शामिल होने गए थे। मैं, मेरा छोटा भाई, मेरी बहन, मेरे चचेरे, ममेरे, फुफेरे और ढेरों भाई-बहन हम वहाँ उस शादी में मिले थे। हम बच्चों का दिल आपस में ऐसा लग गया था कि हमें लगता था कि ये शादी कभी खत्म ही न हो।
झुक जाना मूर्खता नहीं, जीतने के लिए तनना बेवकूफी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक
भोपाल में मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था। नाम था आलोक।
आलोक बहुत मिलनसार और विनम्र था। हम दोनों हमीदिया कॉलेज में साथ पढ़ते थे। आलोक की दिलचस्पी राजनीति में थी, मेरी पत्रकारिता में। दुबला-पतला आलोक जब किसी से मिलता तो हमेशा मुस्कुराता हुआ मिलता। कुछ लोग उसकी शिकायत भी करते, पर वो कभी किसी की बुराई नहीं करता। मैं कभी-कभी हैरान होता और उससे पूछता कि आलोक तुम्हें कभी कोई बात बुरी नहीं लगती?
सम्राट अशोक ने बनवाया था साँची का स्तूप
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
दिसंबर 1994 की सर्दियों का समय था जब किसी काम से भोपाल जाना हुआ। पहले दिन को साउथ तांत्या टोपे नगर (टीटी नगर) में यूथ होस्टल में ठहरा। अगले दिन एनवाईपी के भाई प्रिय अभिषेक अज्ञानी आकर अपने घर ले गये। उनके घर हफ्ते भर रहा। इस दौरान वह रोज मुझे मार्ग समझा देते और मैं अपनी मर्जी से अकेले भोपाल और आसपास घूमता रहता। एक दिन साँची जाने को तय किया। सो सुबह सुबह ट्रेन पकड़ी पहुँच गया साँची। साँची में विशाल बौद्ध स्तूप तो है ही। साँची मध्य प्रदेश के दूध का ब्रांड भी है। ठीक वैसे ही जैसे बिहार का सुधा, यूपी का पराग, हरियाणा का वीटा, पंजाब का वेरका, कर्नानटक का नंदिनी
बदलता भोपाल
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आधी रात को चार शराबियों की निगाह ताजमहल पर पड़ गयी। चारों को ताजमहल बहुत पसन्द आया। उन्होंने तय कर लिया इतनी सुन्दर इमारत तो उनके शहर में होनी चाहिए थी। पर कमबख्त सरकार कुछ करती ही नहीं। क्यों न हम चारों रात के अंधेरे में सफेद संगमरमर की इस इमारत को चुरा कर अपने शहर ले चलें!
हिन्दी की जरूरत किसे है?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
अब जबकि भोपाल में 10 सितंबर से विश्व हिन्दी सम्मेलन प्रारंभ हो रहा है, तो यह जरूरी है कि हम हिन्दी की विकास बाधाओं पर बात जरूर करें। यह भी पहचानें कि हिन्दी किसकी है और हिन्दी की जरूरत किसे है?
आओ, हिन्दी की भी सोच लें भाई
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
सितंबर का महीना आ रहा है। हिन्दी की धूम मचेगी। सब अचानक हिन्दी की सोचने लगेंगें। सरकारी विभागों में हिन्दी पखवाड़े और हिन्दी सप्ताह की चर्चा रहेगी। सब हिन्दीमय और हिन्दीपन से भरा हुआ। इतना हिन्दी प्रेम देख कर आँखें भर आएँगी। वाह हिन्दी और हम हिन्दी वाले। लेकिन सितंबर बीतेगा और फिर वही चाल जहाँ हिन्दी के बैनर हटेंगें और अंग्रेजी का फिर बोलबाला होगा। इस बीच भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन भी होना है। यहाँ भी दुनिया भर से हिन्दी प्रेमी जुटेगें और हिन्दी के उत्थान-विकास की बातें होंगी। ऐसे में यह जरूरी है कि हम हिन्दी की विकास बाधा पर भी बात करें। सोचें कि आखिर हिन्दी की विकास बाधाएँ क्या हैं?
‘बेब’ कहीं का
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
'बेब' - ये नाम सुअर के एक बच्चे का है।
अलाउड नहीं है…
सोनम झा :
बस चल रही थी टी.आर.वन ये बैरागढ़ के पहले से आती है और शायद आकृति से दूर तक जाती है मुझे ठीक से नहीं पता। यह भोपाल शहर की खासियत है कि यहाँ कोई भी सवारी हो जल्दी से एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाती हैं और जबसे पिछले चार सालों से ये लाल बसे भोपाल की सड़कों पर सरपट दौरने लगी हैं तब से भोपाल शहर की तो रौनक हीं बढ़ गयी है।
दूल्हा तो मोदी ही हैं, आडवाणी हैं नाराज फूफा
आडवाणी फिर से अपनी नाराजगी को लेकर सुर्खियों में हैं। पहले वे इस अंदेशे से नाराज थे कि बार-बार बुजुर्गों को लोकसभा चुनाव से दूर रहने की सलाह देने का मतलब कहीं उन्हें चुनावी दौड़ से बाहर करना तो नहीं है।