श्रीशैलम बांध – आंध्र और तेलंगाना को करता है आबाद

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

श्रीशैलम के बाद हमारी वापसी हो रही थी। महादेव के दर्शन के बाद एक खास तरह का संतोष था मन में, कई साल पुरानी इच्छा पूरी जो हो गयी थी। जाते वक्त चालक महोदय ने का था कि वापसी में डैम दिखाउँगा। सो अपने वादे के मुताबिक। वह रुक गये। पातालगंगा के पास हमलोग श्रीशैलम बांध देखने के लिए रुके। यहाँ पर एक व्यू प्वांइट है जहाँ से आप जलाशय का नजारा कर सकते हैं। फोटो खिंचवा सकते हैं। सभी आने जाने वाली गाड़ियाँ यहाँ रुकती हैं। हालाँकि आप बिना अनुमति के जलाशय के पास तक नहीं जा सकते।

कृष्णा नदी पर इस बांध का निर्माण 1981 में पूरा हुआ। इसका निर्माण 1960 में आरंभ हुआ था। बांध के एक तरफ आंध्र प्रदेश का करनूल जिला है तो दूसरी तरफ तेलंगाना का महबूब नगर जिला।

बांध की ऊंचाई 145 मीटर और लंबाई 512 मीटर है, जबकि कैचमेंट एरिया 206 वर्ग किलोमीटर है। बांध में कुल 12 रेडियल गेट बने हैं। यह देश का तीसरा बड़ा हाईड्रोलिक पॉवर प्रोजेक्ट है। यहाँ से 900 मेगावाट का बिजली उत्पादन के लिए 6 इकाईयां हैं। इस बांध का आंध्र और तेलंगाना के लिए काफी महत्व है। इसके पानी से करनूल और कडप्पा जिले सिंचित होते हैं। करनूल को आंध्र का राइस पाकेट ( धान का कटोरा) माना जाता है उसके खेतों को श्रीशैलम बांध से पानी मिलता है। दोनों तरफ ऊंचे पहाड़ के बीच पातालगंगा में कृष्णा नदी पर बांध बड़ा ही मनोरम नजारा पेश करता है। पर बारिश के दिनों में यहाँ पानी का स्तर काफी ऊपर आ जाता है।     

कहा जाता है कि इस बांध के निर्माण के दौरान कई मंदिर पानी में जलप्लावित हो गए। इनमें से भीमेश्वर मंदिर प्रमुख था। हमारे साथ चल रहे बाल गंगाधर बताते हैं कि बांध निर्माण के दौरान कुल जलाशय निर्माण में 10 से 15 मंदिर डूब गये। खैर हमलोग यहाँ अक्तूबर के महीने में पहुँचे हैं। तारीख है 23 अक्तूबर। बांध के नीचे पानी काफी कम है। हमलोग अपनी गाड़ी समेत नीचे उतरते हैं। यहाँ पर एक देवता की मूर्ति दिखायी देती है। बताया जाता है कि यह भी किसी डूबे हुए मंदिर की मूर्ति है। बांध के नीचे बने जलाशय का पानी ठहरा हुआ है। यहाँ पर टोकरी जैसी गोल-गोल नावें हैं। इसमें बैठ कर लोग जलविहार करते हैं।

हमें भी यहाँ नाविकों ने न्योता दिया महज 30 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से जल विहार करने का। लेकिन हमारे अनादि तैयार नहीं हुए। वहीं हमारे साथ आए बाल गंगाधर को यहाँ नदी में एक धार्मिक सांगोपांग करना था। उन्हें एक किलो तुअर (अरहर) की दाल जल में प्रवाहित करनी थी। ये पूजा संपन्न करायी गयी। तभी आसपास से कुछ गरीब महिलाएँ आ गईं। अरहर की दाल इन दिनों 200 रुपये किलो से ज्यादा बिक रही है, सो उन महिलाओं ने कहा कि दाल को जल में प्रवाहित करने के बजाय हमें दे दो। हम उनकी अनुज्ञा सुन थोड़े भावुक हो गये। पर हमारी भी मजबूरियाँ थी। अनुष्ठान पूरा कर हमलोग आगे बढ़े। पर श्रीशैलम बांध का सुंदर नजारा तो दिल में रच बस गया सदा के लिए।

(देश मंथन, 16 जनवरी 2016)

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