भीतर से ही उड़ान संभव

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बहुत दिनों बाद उड़ने वाले गुब्बारे की याद आयी। याद क्या आयी, समझ लीजिए कि मैं सावन में लगने वाले मेले में पहुँच गया। मुझे याद आने लगा कि माँ मुझे एक रुपया देती थी, सोमवारी मेले में जाने के लिए। मैं मिट्टी के खिलौने खरीदता, आलू टिक्की खाता, और आखिर में दस पैसे का गुब्बारा खरीदता। गुब्बारे को अपनी साइकिल की हैंडिल पर बांधता और दनदनाता हुआ घर पहुँचता।

माँ मिट्टी के खिलौने देख कर खुश होती। फिर पूछती कि संजू बेटा ने कुछ खाया कि नहीं। मैं बता देता कि मैंने 25 पैसे की टिक्की खायी, 50 पैसे का ये खिलौना खरीदा और 10 पैसे का गुब्बारा। बच गये पैसे अगले हफ्ते काम आएंगे, माँ मुझे गले से लगा लेती।
खिलौने से कुछ देर खेल कर मैं माँ से कहता कि तुम देखो, मैं एक बहुत अच्छी चीज दिखलाता हूं। माँ मेरी ओर मुस्कुराती हुई देखती और मैं साइकिल की हैंडल पर लगे गुब्बारे के धागे को तोड़ देता। गैस से भरा गुब्बारा हवा में उड़ जाता।
मैं तालियाँ बजाता, “माँ, देखो वो गुब्बारा चाँद पर चला जा रहा है।”
***
सावन में सोमवारी मेला हर हफ्ते लगता। दीदी मंदिर जा कर भगवान शंकर को बेल पत्र चढ़ाती, मैं मेले में जाता। कम से चार मेले में तो मैं जाता ही। खिलौने चाहे जो खरीदूं पर गैस वाला गुब्बारा जरूर खरीदता था।
मुझे गैस वाले गुब्बारे को उड़ते हुए देखना बहुत अच्छा लगता था। मैं हर बार धागा तोड़ता और गुब्बारे को उड़ता हुआ देखता।
माँ मुझसे हर बार पूछती कि तुम गुब्बारा खरीदते ही क्यों हो, जब उसे उड़ा देना होता है।
मैं कहता कि माँ कई दफा इतनी तेज हवा चलती है, पर गुब्बारा कभी इतना ऊँचा नहीं उड़ पाता। यहाँ तक कि आंधी में भी मैंने मुँह से फुला कर गुब्बारे को उड़ाने की कोशिश की है, पर कभी बाहर की हवा से गुब्बारा इतना ऊँचा नहीं उड़ता। पर इसमें भीतर जो गैस भरी होती है, वो इसे बहुत ऊँचे तक उड़ाती है, ऐसा क्यों?
माँ के पास विज्ञान के जवाब नहीं थे। पर उसके पास जिन्दगी के जवाब थे। माँ कहती कि बाहर की शक्ति से नहीं, कोई भी चीज भीतर की शक्ति से ही उड़ पाती है।
मैं तब छोटा था। इस फलसफे में इतना ही समझ पाता था कि गुब्बारे को चाँद तक पहुँचाने का दम उसके भीतर भरी खास तरह की हवा से मुमकिन है, बाहर की हवाओं में इतना दम नहीं कि उसे चाँद तक पहुँचा दें।
इस तरह एक नहीं, न जाने कितने गुब्बारे मैं चाँद तक भेज चुका हूँ।
पर कल किसी ने मुझे एक मेसेज भेजा, “एक उड़ते हुए गुब्बारे पर लिखा था कि वो जो बाहर है वह नहीं, वह जो भीतर है वही हमको ऊपर ले जाता है।”
ये संदेश मुझे व्हाट्स ऐप पर मिला।
लगा कि माँ ने ऊपर से यह संदेश मुझ तक भिजवाया है। ऐसा लगा कि माँ के पास मेरे सारे गुब्बारे ऊपर पहुँच गये हैं। माँ ने उन गुब्बारों को पहचान लिया है, तभी तो इतने वर्षों बाद पता नहीं कहाँ से उड़ता-पुड़ता वो संदेश मुझ तक दुबारा चल कर आया है, जिसे माँ मोबाइल फोन, व्हाट्स ऐप आने से पहले दे कर गयी थी। मैंने कभी किसी से माँ के उस संदेश की चर्चा नहीं की, पर माँ का संदेश मुझ तक किसी दोस्त ने भेजा।
सचमुच माँ कहीं गयी नहीं। वो ऊपर से सब देखती है और समय-समय पर अपने राजा बेटा को बताती रहती है कि जो होना है भीतर होना है। भीतर से ही उड़ान संभव है। बाहरी शक्तियों में वो दम कहाँ?    
(देश मंथन, 04 जून 2016)

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