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जब संसद भी बेमानी हो जाए
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
प्रदर्शन सड़क पर होने चाहिए और बहस संसद में, लेकिन हो उल्टा रहा है प्रदर्शन संसद में हो रहे हैं, बहस सड़क और टीवी न्यूज चैनलों पर। ऐसे में हमारी संसदीय परम्पराएँ और उच्च लोकतांत्रिक आदर्श हाशिए पर हैं। राजनीति के मैदान में जुबानी कड़वाहटें अपने चरम पर हैं और मीडिया इसे हवा दे रहा है। सही मायने में भारतीय संसदीय इतिहास के लिए ये काफी बुरे दिन हैं।
घेलुआ और 2019 के टोटके!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
राहुल और शौरी से प्रशान्त की मुलाकातें बताती हैं कि राजनीति काफी रोचक होती जा रही है! अरुण शौरी पिछले काफी समय से नरेन्द्र मोदी के मुखर आलोचक रहे हैं और समझा जाता है कि बिहार की हार के बाद जारी बीजेपी के बुजुर्ग नेताओं के बयान का मसौदा तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका थी।
शुभ नहीं हैं 2016 के संकेत!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
बिहार में सबकी साँस अटकी है! क्योंकि इस चुनाव पर बहुत कुछ अटका और टिका है! राजनीति से लेकर शेयर बाजार तक सबको बिहार से बोध की प्रतीक्षा है! किसी विधानसभा चुनाव से शेयर बाजार इतना चिन्तित होगा, कभी सोचा नहीं था। लेकिन वह इस बार वह बहुत चिन्तित है। इतना कि देश की तीन बड़ी ब्रोकरेज कम्पनियों ने खुद अपनी टीमें बिहार भेजीं! मीडिया की चुनावी रिपोर्टों पर भरोसा करने के बजाय खुद धूल-धक्कड़ खा कर भाँपने की कोशिश की कि जनता का मूड क्या है? क्यों भला?
बदल गया बिहार
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक श्राद्ध में शामिल होने के लिए मुझे दिल्ली से पटना आना पड़ा। पटना इन दिनों चुनावी रंग में रंगा है। अब चुनाव से मेरा क्या लेना देना? एयरपोर्ट से होटल तक पूरा शहर तरह-तरह के चुनावी पोस्टरों से पटा पड़ा है। कहीं लिखा है, “अबकी बार, नीतीश कुमार” तो कहीं लिखा है, “बदलेगा बिहार, बदलेगी सरकार।”
बलि के बकरों के लिए किसका काँपता है कलेजा?
अभिरंजन कुमार :
अखलाक को किसी हिन्दू ने नहीं मारा। हिन्दू इतने पागल नहीं होते हैं। उसे भारत की राजनीति ने मारा है, जिसके लिए वह बलि का एक बकरा मात्र था। सियासत कभी किसी हिन्दू को, तो कभी किसी मुस्लिम को बलि का बकरा बनाती रहती है। इसलिए जिन भी लोगों ने इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश की है, वे या तो शातिर हैं या मूर्ख हैं।
तब बहुत बदल चुका होगा देश!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
तीन कहानियाँ हैं! तीनों को एक साथ पढ़ सकें और फिर उन्हें मिला कर समझ सकें तो कहानी पूरी होगी, वरना इनमें से हर कहानी अधूरी है! और एक कहानी इन तीनों के समानान्तर है। ये दोनों एक-दूसरे की कहानियाँ सुनती हैं और एक-दूसरे की कहानियों को आगे बढ़ाती हैं और एक कहानी इन दोनों के बीच है, जिसे अक्सर रास्ता समझ में नहीं आता। और ये सब कहानियाँ बरसों से चल रही हैं, एक-दूसरे के सहारे! विकट पहेली है। समझ कर भी किसी को समझ में नहीं आती!
दीनदयाल उपाध्याय होने का मतलब
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
राजनीति में विचारों के लिए सिकुड़ती जगह के बीच पं. दीनदयाल उपाध्याय का नाम एक ज्योतिपुंज की तरह सामने आता है। अब जबकि उनकी विचारों की सरकार पूर्ण बहुमत से दिल्ली की सत्ता में स्थान पा चुकी है, तब यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर दीनदयाल उपाध्याय की विचारयात्रा में ऐसा क्या है जो उन्हें उनके विरोधियों के बीच भी आदर का पात्र बनाता है।
बंदर बना राजा
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
यह कहानी मुझे किसी ने सुनाई थी। इस कहानी को सुन कर मैं बहुत देर तक अकेले में हँसता रहा। नहीं, मैं हँस नहीं रहा था, दरअसल मैं रो रहा था।
‘क्रिकेट दबंग’ फारुख की गुंडई !!
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
नब्बे के दशक की शुरुआत में कश्मीरी पंडितों को घाटी से खदेड़ने के लिए कथित रूप से जिम्मेदार जम्मू एवं कश्मीर के तत्कालीन मुख्य मन्त्री और वंशवादी राजनीति के देश में चुनिंदा पहरुओं में एक फारुख अब्दुल्ला को लगता है कि अच्छे दिन बीत गये और आजादी बाद से ही राज्य को लूटने वाले इस शख्स ने राज्य की क्रिकेट का भी कम बेड़ा गर्क नहीं किया।
बीमारू की राजनीति
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:
बीमारू पर बड़ा कनफ्यूजन है। मुझे नहीं। कंफ्यूजन जानबूझकर पैदा किया जा रहा है। मोदी जी कह रहे हैं कि बिहार को बीमारू राज्य से बाहर निकालेंगे। मने बाकी को बीमारू ही रहने देंगे। जहाँ भाजपा की सरकार है उसे भी। आपको शायद ना मालूम हो पर झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान भी बीमारू राज्य हैं। नीतिश कुमार मोदी की तरह होते तो बताते। लेकिन वो बुरा मान जाते हैं। झटका खा जाते हैं। मुझे नहीं लगता कि आम आदमी खासकर 80 के दशक में पैदा हुई आज की युवा पीढ़ी को बीमारू राज्य का मतलब भी पता है। अगर पता होता तो यह दावा ही नहीं किया जाता कि बिहार को बीमारू राज्य से अलग करेंगे। बिहार को बीमारू से अलग कर देंगे तो “मारू” बचेगा। और आप से वो नहीं संभलने वाला।