डलहौजी से यादें जुड़ी हैं सरदार अजीत सिंह की

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

ये साल 1946 की बात है। देश आजादी के दहलीज पर खड़ा था। भारत की अंतरिम सरकार बन चुकी थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के महान सपूत सरदार अजीत सिंह को रिहा करवाया। सभी जानते हैं कि सरदार अजीत सिंह भगत सिंह के चाचा थे। वे पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन के प्रणेता थे।

भगत सिंह के जीवन पर चाचा अजीत सिंह का काफी प्रभाव था। पर भारत विभाजन की बातों ने अजीत सिंह का आजादी मिलने का सारा उल्लास समाप्त कर दिया। उनका स्वास्थ्य लगातार खराब होने लगा। स्वास्थ्य लाभ के लिए लोगों की सलाह पर वे हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशन डलहौजी चले गये। 15 अगस्त 1947 की रात उन्होंने जवाहरलाल नेहरू का भाषण सुना, भारत के आजाद होने की घोषणा सुनी और उसी रात सरदार अजीत सिंह चिर निद्रा में सो गये।
सरदार अजीत सिंह की समाधि
डलहौजी शहर के गाँधी चौक से तीन किलोमीटर दूर पंजफूला में अजीत सिंह की याद में समाधि बनाई गयी है। यहीं पर 15 अगस्त 1947 को उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था।
पंजपूला में एक खूबसूरत झरना भी है। यहाँ पर छोटे से ताल में बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है। साथ ही क्रास द वैली का भी आनंद ले सकते हैं। आप गांधी चौक से पैदल चलते हुए पंजपुला पहुँच सकते हैं। टैक्सी बुक कर सकते हैं। टैक्सी वाले आने जाने का 450 रुपये माँगते हैं। अच्छा है सेहत के लिए पैदल प्रकृति की आबोहवा का आनंद लेते हुए चलें। पंजपूला के रास्ते में कुछ पुरानी ब्रिटिश कालीन कोठियाँ नजर आती हैं।
सरदार अजीत सिंह को 1906 में में लाला लाजपत राय जी के साथ देश निकाला का दंड दिया गया था। उनके बारे में कभी बाल गंगाधर तिलक ने कहा था-ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं। उन्हें क्या पता था कि आजादी के साथ ही विभाजन की त्रासदी आएगी, जिससे पीड़ित होकर यह व्यक्ति दुनिया को अलविदा कह देगा।
अजीत सिंह जो भगत सिंह की प्रेरणा थे, जिनके साथ जा कर भगत सिंह खेत में खिलौना पिस्तौल बोकर बंदूकें उगाने के सपने देखते थे। भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन की नींव अजीत सिंह जो उनके चाचा थे के हाथ से पड़ी। सरदार अजीत सिंह अपनी जवानी में ही भारत की आजादी के लिए अलख जगाने के लिए विदेश चले गये थे। विदेश में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। डलहौजी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने चार महीने गुजारे तो रविंद्रनाथ टैगोर और पंडित नेहरू की भी पसंदीदा जगह थी।
कई महान लोगों को डलहौजी का वातावारण काफी पसंद आता रहा है। अंग्रेजी महान लेखक रूडयार्ड किपलिंग अपने पिता के साथ कई बार डलहौजी आया करते थे। अच्छे मौसम के कारण डलहौजी में भी कई निजी स्कूल हैं, जहाँ मोटी फीस देकर अमीरों के बच्चे पढ़ाई करते हैं। इनमें हलहौजी पब्लिक स्कूल प्रमुख है।
बात डलहौजी की करें तो 1854 में अंगरेजों ने इस हिल स्टेशन की खोज स्वास्थ्य लाभ के लिए की थी। यहाँ सरदियों में बर्फबारी भी हो जाती है। वैसे यहाँ देखने के लिए कुछ खास नहीं है। आप पूरा शहर तीन घंटे में पैदल घूम सकते हैं। पर अच्छे मौसम में कुछ वक्त गुजराने के लिए यहाँ ठहरा जा सकता है। यहाँ के होटल महँगे हैं। यूथ होस्टल में आप सस्ती दरों पर ठहर सकते हैं। गाँधी चौक पर शाम को रौनक बढ़ जाती हैं। यहाँ पर आप आईसक्रीम, भुट्टा और स्थानीय फल खाने के मजा ले सकते हैं। यहाँ आप प्लम जरूर खाएँ। मजा आएगा।
-1970 मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित डलहौजी को ये नाम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के नाम पर मिला है जिसने इस हिल स्टेशन को आबाद किया था।
-1854 में मैकलियोड ने इस शहर का नाम डलहौजी रखने का प्रस्ताव दिया, तब डलहौजी ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल थे।
-1870 में डलहौजी में पहला होटल खुला, इसके बाद तो कई होटल खुलते चले गए।
-1873 में गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर भी डलहौजी आए। उन्हें भी यह हिल स्टेशन खूब पसंद आया था।
-1884 में लोकप्रिय अंग्रेजी लेखक रुडयार्ड किपलिंग डलहौजी आए। नोबल पुरस्कार से सम्मानित किपलिंग जंगल बुक के लेखक हैं।
डलहौजी का बस स्टैंड।
कैसे पहुँचे
डलहौजी पहुँचने के लिए सुगम रास्ता पठानकोट से है। यहाँ से बस से या फिर निजी टैक्सी से डलहौजी जाया जा सकता है। पठानकोट से डलहौजी की दूरी 80 किलोमीटर है। पठानकोट से बनीखेत की दूरी 74 किलोमीटर है। बनीखेत से डलहौजी महज 6 किलोमीटर है। आप बनीखेत में रहकर भी डलहौजी घूम सकते हैं। बनीखेत में डलहौजी की तुलना में सस्ते होटल उपलब्ध हैं। डलहौजी के आसपास आप बनीखेत, चंबा, खजियार चामियारा जलाशय आदि स्थलों का भ्रमण करने जा सकते हैं।
(देश मंथन  03 जून 2016)

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