आदमी अपनों की चोट से ही टूटता है!

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक गाँव में एक लोहार रहता था। उसके बगल में एक सुनार रहता था। लोहार लोहे का काम करता और सुनार सोने का। लोहार लोहे को आग की भट्ठी में तपाता फिर उस पर हथौड़ा चलाता। सुनार भी सोने को आग में तपता फिर उस पर हथौड़े चलता।

 जब लोहार हथौड़े चलाता तो बहुत दूर तक बहुत तेज आवाज जाती। धड़ाम-धड़ाम। जब सुनार सोने पर हथौड़ा चलाता तो किसी को पता भी नहीं चलता, इतनी धीमी आवाज आती। ठक-ठक।

एक दिन लोहे का छोटा सा टुकड़ा छिटक कर सुनार की दुकान के पास आ गिरा। लोहे के टुकड़े ने सोने की ओर बहुत कातर भाव से देखा तो सोने के टुकड़े ने लोहे के टुकड़े से पूछा, “भाई एक बात बताओ, तुम्हें भी आग में तपाया जाता है, मुझे भी आग में तपाया जाता है। तुम्हें भी गरम करके ठोका जाता है, मुझे भी गरम करके ठोका जाता है। लेकिन जब तुम पर हथौड़ा चलता है तो तुम इतनी जोर-जोर से चिल्लाते हो। मैं तो बस मामूली ठक-ठक से काम चला लेता हूँ। मैं मानता हूँ कि इस तरह हथौड़ा पड़ने से हमें चोट लगती है, लेकिन मैं तुम्हारी तरह इतनी जोर से चीखता और चिल्लाता नहीं। आखिर क्यों?”

लोहे का टुकड़ा बहुत रुँआसा होकर बोला, “मेरी और तुम्हारी तकलीफ में फर्क है। मुझे जो हथौड़े पीटता है वह मेरा भाई है। तुम्हारा कोई नहीं। जाहिर है मुझे मेरा भाई ही हथौड़ा बन कर पीटता है। तो मुझे ज्यादा तकलीफ होती है। किसी को तकलीफ तब होती है, जब उसका अपना उसे चोट देता है। गैरों की चोट तो कोई भी सह लेता है। तकलीफ अपनों की चोट की होती है। उम्मीद है तुम मेरा दर्द समझ गये होगे?”

है तो यह कहानी। लेकिन बहुत कुछ कहती हुयी कहानी। यह सच है कि आदमी टूटता ही अपनों की चोट से है। दूसरों की चोट से आदमी को सिर्फ शरीर पर चोट लगती है, लेकिन अपनों की चोट मन पर लगती है।

शरीर की तकलीफ आदमी सह जाता है। मन की चोट से आदमी बिलबिला उठता है। लोहा और सोना दोनों निर्जीव वस्तु हैं। पर कहानी कहने वाले ने चोट और उसकी चीख को बयाँ बहुत तरीके से किया है।

याद कीजिए, मदर इंडिया का वह सीन जहाँ एक माँ अपने बेटे को इसलिए गोली मार देती है क्योंकि उसका बेटा किसी की बेटी को लेकर भाग रहा होता है।

माँ अपने खून की इस चोट को नहीं सह पाती। जिस बेटे को पालने के लिए उसने पता नहीं जिंदगी से कितना लोहा लिया होता है, पता नहीं किस-किस दर्द से गुजरती है, वो ही माँ अपनी संतान की उस चोट को बर्दाश्त नहीं कर पाती, और उसे गोली मार देती है।

रिश्तों का सबसे बड़ा दंश ही यही है कि उसे अपनों की चोट ज्यादा लगती है। अंग्रेजों से लोहा लेने वाले मोहनदास करमचंद गाँधी अपने ही एक बेटे की हरकतों के आगे हार गये थे।

सारी दुनिया के पिता कहलाने वाले गाँधी की आत्मकथा पढ़ते हुये कई बार लगता है कि गाँधी को जीवन भर अपने ही बेटे के पिता न बन पाने का दुख सालों साल सालता रहा। सारी दुनिया का उद्धार करने वाले कृष्ण को अपने ही पुत्र प्रद्युम्न की हरकतों से न सिर्फ शर्मसार होना पड़ा बल्कि उसे शापित भी करना पड़ा।

मदर इंडिया की नरगिस का दर्द अपने बेटे की हत्या के बाद उसकी आँखों में जिस तरह छलक कर आया वह लोहे को मिली उसी चोट की तरह थी, जिस तरह हथौड़े की चोट से लोहे ही बिलबिलाहट निकलती है।

गाँधी की मजबूरी की कई कहानियाँ उनकी अपनी संतान की तरफ से दी गयी होती हैं, और अंग्रेजों के जुल्म को सीने पर सहने वाले गांधी सीने के भीतर अपने बेटे की चोट सहते हुए कई बार टूटे होंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं होगा।

शिशुपाल तक के सौ अपराध माफ कर देने वाले कृष्ण अपनी संतान के एक अपराध को माफ नहीं कर पाये तो यकीनन यह चोट लोहे से लोहे को मिली थी।

जिन्हें अपने परिवार में किसी से धोखा मिलता है, जिन्हें अपनी उम्मीदों से धोखा मिलता है, जिन्हें अपनी नीतियों से धोखा मिलता है, जिन्हें उनसे धोखा मिलता है, जिन पर वो भरोसा करते रहे हैं वे लोहे की तरह बिलबिलाए तो अब हम कोई सवाल नहीं पूछेंगे।

जिसने लोहे के दर्द को जान लिया वह तो लोहे की चीख पर आँसू बहाएगा। धन्य है सोना कि उस पर चोट करने वाला उसका सगा नहीं होता। शायद इसीलिए सोने की कीमत ज्यादा है कि उसके अपने उसके अपने होते हैं। उसके सगे उसका साथ देते हैं।

और लोहा? वह तो चोट खाता है, बिलबिलाता है और कौड़ियों के भाव चला जाता है। यही होता है, जिसके अपने उसे तकलीफ देते हैं, उसकी कोई कीमत नहीं होती। कीमत उसी की होती है जिसके रिश्ते सोने की तरह होते हैं, लोहे की तरह नहीं।

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