उपचुनावों के नतीजों से गुमान टूटेगा भाजपा का

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राजीव रंजन झा :

शायद ही किसी ने सोचा होगा कि लोकसभा चुनावों में तूफानी कामयाबी के बाद इन उपचुनावों में भाजपा इतना कमजोर प्रदर्शन करेगी।

हालाँकि मुझे नहीं लगता कि ये उपचुनाव मोदी लहर के खात्मे की घोषणा करते हैं। इन उपचुनावों में मोदी कोई मुद्दा ही नहीं थे। यहाँ तक इन चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोई सहभागिता भी नहीं थी। उन्होंने कोई सार्वजनिक सभा वगैरह तो नहीं ही की, और पार्टी संगठन के स्तर पर भी रणनीति बनाने या अभियान की निगरानी वगैरह में शायद ही उनकी कोई भूमिका रही हो। मुझे तो सुनने-पढ़ने को नहीं मिला कि मोदी ने उपचुनावों की तैयारी के सिलसिले में पार्टी में अंदुरूनी स्तर पर भी एक बैठक तक की हो। 

एक और पहलू है, जिसकी चर्चा मीडिया में नहीं है। इन उपचुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन तंत्र भी सक्रिय नहीं हुआ। एक तरह से यह चुनाव भाजपा के स्थानीय नेताओं के भरोसे छोड़ दिया गया। नरेंद्र मोदी और संघ का इन उपचुनावों से दूर रहना रणनीतिक भी हो सकता है। लेकिन शायद भाजपा ने संगठनात्मक स्तर पर भी इन्हें बड़े हल्के में लिया। यहाँ तक कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की भी बहुत सक्रियता नहीं दिखी। हो सकता है कि लोकसभा में मिली सफलता के बाद भाजपा नेताओं को यह गुमान रहा हो कि सफलता अपने-आप चरण चूमेगी। अब गुमान टूटा होगा, और यह भविष्य में उन्हें सचेत करेगा।

उत्तर प्रदेश और राजस्थान ये दोनों ऐसे प्रदेश रहे हैं, जहाँ लोकसभा चुनाव में भाजपा को आशातीत सफलता मिली थी, उसकी अपनी उम्मीदों से भी ज्यादा। लेकिन इन दोनों राज्यों में भाजपा उपचुनावों में फिसड्डी बन गयी। जहाँ राजस्थान के नतीजे वसुंधरा राजे सरकार के अब तक के कामकाज की समीक्षा की जरूरत दर्शाते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के बारे में भाजपा को अपनी पूरी रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा।

(देश मंथन, 17 सितंबर 2014)

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